Monday, November 22, 2010

आतंकवाद

एक दिन मुन्नी और अम्मा जा रहे थे बाज़ार,
लेने को खूब सारा सामान, मुरब्बे और अचार,,
तभी तपाक से मुन्नी ने पुछा "माँ ये आतंकवाद क्या होता हैं ?"
"क्यों कोई इसका नाम लेकर रोता हैं फिर भी क्यों ये किसी क आसूँ नहीं धोता हैं ?"
अम्मा, मुन्नी का सवाल सुन कर हो गयी अचंभित 
क्योंक़ि कभी सोचा भी न था उसने क़ि मुन्नी इस कदर सवाल पूछ कर कर देगी उसे विडम्बित
अम्मा ने सवाल को पहले थोडा तोला,
फिर जवाब क लिए अपने मुह को खोला,,
वो बोली :-
"जब इंसान क दिल क़ि दरिंदगी बाद जाती हैं 
और उसे न अपने घर क़ी, न रिश्तेदार क़ी याद आती हैं
तो वो गुस्से मैं गोला - बारूद और बन्दूक उठता हैं,
बेटा, बाप का और भाई - भाई का दुश्मन बन जाता हैं,,
कभी जिहाद क नाम पर तो कभी जयेदाद क नाम पर
वो हर जगह खून क़ी नदियाँ बहता हैं.
'सोने क़ी चिड़िया' जैसे अपने देश को,
वो आतंक का कला कौवा बनता हैं.
न इस समय वो अपनों का होता है
और न वो परायों का होता हैं,
वो इस कदर खुंकार हो जाता हैं क़ी वो सिर्फ आतंकवाद फैलता हैं .

"आतंकवाद मनाता हैं अपनी दिवाली खून से,
 आतंकवाद मनाता हैं अपनी होली खून से,,
मानता हैं इसका मुहर्रम खून से,
मानती हैं इसकी ईद खून से,,
naa ये कोई रिश्ते देखता हैं,
ना ये कोई मज़हब देखता हैं,, 
देखता हैं तो बस ये लाशों से लदी सदके देखता हैं,
और खून से सनी दीवारे देखता हैं.

ये सुनकर मुन्नी क़ी जिज्ञासा और बड़ी,
और उसने एक और सवाल क़ी छोड़ी झड़ी.
उसने पुछा :-

"अम्मा ये आतंकवाद कब से अपने पाँव पसार रहा हैं,
ऐसा कब से चलता आ रहा हैं?"

अम्मा बोली :-

"मुन्नी सूरज जलता रहा और चान भी सिसकता रहा,
आतंकवाद का साया उम्र भर ऐसे ही बढता रहा.
उम्र भर ऐसे ही बढता रहा.."

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